Saturday, October 31, 2009

बड़ा कौन माता पिता या भगवान




    बड़ा कौन माता पिता या भगवान

बड़ा कौन माता पिता या भगवान ये सवाल काफी समय से मेरे दिमाग में चल रहा था. लेकिन मेरे एक मित्र ने इसका हल बताया क्या  वो ठीक है आप बताये ,
आजकल भारत देश में वर्द्धाआश्रमों की बाढ़  सी आई हुई है , जयादातर बच्चे अपने माता पिता को आश्रमों में छोड़ रहे है . जो बच्चे अपने माता पिता को अपनी निजता में दखल मानते है . उनकी बीमारी,नाकारापन  ,चिडचिडापन और हर बात में टोका टोकी को बर्दाश्त न कर पाने की सूरत में इनको आश्रमों में छोडा आना ही उचित समझते है , इससे उन माता पिताओं पर क्या गुजरती होगी जो अपने बच्चो से बड़ी बड़ी आशाये लगाये हुए होते है , मेरा भी एक मित्र अखलेश इसी तरह का है जिसने अपने माता पिता को आश्रम में भेज दिया है  और खुद  अपनी पत्नी और तीन बच्चो के साथ एक बढ़िया बंगले में रहता है , भगवान  का इतना बड़ा भगत है की जहा भी मंदिर दिखे वहा दर्शन करना और देवी देवताओ के कार्यो के लिए धन लुटा उसकी आदत में शुमार है ,यानि भगवान जहाँ है सब कुछ वहां है
उसके विपरीत मेरा दूसरा दोस्त अरुण अपने माता पिता को भगवान से बड़ा मानता है , वो उनके लिए कुछ भी करने को आतुर रहता है जब अरुण की शादी हुई तो अरुण ने अपनी पत्नी यानि मेरी भाभी से एक ही बात कही सुमन मेरे माता पिता मेरे भगवान है कयोकी इन्होने मुझे जन्म दिया है और जो पैदा करता है उससे बड़ा कोई नहीं होता है. संस्कार ,उंच नीच और भगवान के बारे में वही बताते है . जो हमें ज्ञान माता पिता देते है हम उसी के आधार पर अपना जीवन बिताते है , अगर आज तुम माता पिता का आदर करोगी तो कल हमारे बच्चे भी हमारा सम्मान करेगे , और जीवन भर हमारी देखभाल करेगे . जब मेने अरुण से पूछा तो बोला अनिल भाई आप 'हम' आम इंसानों  की तो बात छोडिये 'भगवान' ने खुद अपने माता पिता को ही बड़ा बताया है , श्री गणेश जी को  तो पुरे ब्रहम्मांड का चक्कर काटे बिना देवताओ का सिर मोर बना दिया गया  , क्योकि उन्होंने अपने माता पिता यानि भगवान महादेव और माता पार्वती के चारो और चक्कर काट लिया था , वही भगवान मर्यादा पुरषोतम श्री राम ने अपने अपने पिता के वचन के खातिर अपना सारा राज पाट त्याग दिया तो आप इस बात से अंदाजा लगाये ,
जब भगवान अपने माता पिता को बड़ा मानते है , फिर हम क्यों नहीं मान सकते है , हाँ में भगवान को मानता जरुर हु पूजा अर्चना भी करता हु लेकिन अपने माता पिता की अनदेखी कर के नहीं . हां शायद अरुण की बात मेरे समझ में तो आई , और मेने अपने माता पिता से अपनी पुरानी गलतियों की माफ़ी भी मांगी और उन्होंने मुझे माफ़ भी कर दिया .
में  आप  सभी पढने वालो से में आशा करता हूँ की इस लेख को पढने के बाद आप उन व्यक्तियो को जरुर  समझाए जो अपने माता पिता का ध्यान नहीं रखते है और  उन्हें माता पिता की अहमियत जरुर समझाए .
आपका

Thursday, October 29, 2009

दूर के ढोल सुहावने


                                                


                                        दूर के ढोल सुहावने

एक कहावत है की 'दूर के ढोल सुहावने लगते है'  , ये बात काफी हद तक मुझे तो सही लगती है , इसका कारण मेरा  चंडीगढ़ का दौरा , अभी मुझे दस दिनों के लिए चंडीगढ़ आने का मोका मिला , में बड़ा खुश हुआ  की बहुत बढ़िया शहर है , चोडी चोडी सड़के हरा भरा शहर खुबसूरत तरीके से बने हुए मकान  और फिर में दिल्ली के बारे में सोचने लगा चलो कुछ दिन यहाँ से तो पीछा छूटेगा और शांत वातावरण में जाने का मोका मिलेगा , यहाँ के शोर शराबे से पीछा तो छुटेगा , सामने दुकान वाला सब्जी वाला इनकी जोर  जोर से आती आवाजे ,लेकिन चंडीगढ़ आने के बाद ये नशा मेरा दो दिनों में ही टूट गया , अगर बाज़ार की बात करे तो इतनी दूर की जाने का मन भी ना करे , कुछ खाने को मन करे तो मन को मसोस कर रह जाओ , अगर पड़ोस की बात करे तो इतने बड़े बड़े मकान की पडोसी एक दुसरे को ना  जाने .अगर ऑटो की बात करे तो काफी देर तक तो नजर ही नहीं आता अगर मिल भी जाता है तो रूपये भी ज्यादा मांगता है . फिर मुझे आपनी दिल्ली की याद आने लगी की मेरी दिल्ली जयादा बढ़िया है और उससे जयादा कुछ भी नहीं है सब कुछ सामने ही मिल जाता है , फिर  बस अब अपने ही ढोल सुहावने लगने लगे !

नहीं



                                                               नहीं
नहीं , नहीं, नहीं  एकदम   नहीं  ये शब्द सुनकर में कई बार परेशान हुआ , कई बार ठेस भी लगी , कई बार बगावत करने का मन भी किया , लेकिन कई तरह की मज़बूरी सामने आ  गई . जब  बच्चा था तब  कुछ अच्छा लगा और माता पिता से मांगा  तब उन्होंने कहा 'नहीं'  तब बहुत गुस्सा आया  , दोस्तों ने कई बार कहा नहीं , पत्नी ने भी कहा नहीं जब नोकरी लगी और छुट्टी मांगी तो बॉस ने कहा नहीं ,जब काम  भी खूब किया और तनख्वा बढ़ाने की बात कही तो बॉस ने कहा  नहीं,   हम लोग हर समय हां सुनने की चाहत रखते है लेकिन 'नहीं' कभी भी आपका पीछा नहीं  छोड़ता  .. 

Monday, October 26, 2009

श्री मद्भागवत गीता

                                                          श्री मद्भागवत गीता
भगवत गीता यानि भगवान श्री कृष्ण के मुखार बिंद से निकली एक ऐसी वाणी और उस वाणी को शब्दों में ढालकर बनाया गया एक ऐसा ग्रन्थ जिसको गीता शास्त्र के नाम से जानते है , यह शास्त्र महाभारत के युद्घ के समय जब अर्जुन ने अपने भाई बांधवों ( कोरवो) के साथ युद्घ करने से मना कर दिया था ,तब भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को तत्व ज्ञान का उपदेश दिया था , उसके फलसवरूप  महारथी अर्जुन ने उस ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात  महाभारत का युद्घ किया , और युद्घ में विजय पाई ,
कहते है जो कर्मशील प्राणी इस गीता शास्त्र को पढने के साथ साथ अच्छे कर्म भी करता है , उस प्राणी को शोक ,भय के साथ पुनर्जन्म के पापो से भी मुक्ति मिल जाती है

Sunday, October 25, 2009

हरियाणा का ताज

आज हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में भूपेंदर सिंह हुड्डा ने शपथ तो ले ली है , लेकिन ये ताज फूलो का होगा या काँटों भरा ये तो वक्त बताएगा ,

Sunday, October 4, 2009

हमारा सत्य

हर कोई झूठ पर झूठ बोलता है ,
जयादा तो कोई कम बोलता है ,
वकील और सत्यवादी लोग सबसे कोई ऊपर है,
माननीय नेता जी का नाम सबसे सुपर है ,
कमाई के लिए दुकानदार झूठ बोलता है ,
सच को छिपाने के लिए थानेदार झूठ बोलता है ,
मंदिरों के कई पुजारी झूठे ,दरसन के अभिलाषी झूठे,
क्या करे भगवान, अगर सभी झूठे, तो वो किस्से रूठे ,
कोई नोकरी बचने के लिए झूठ बोलता है ,
तो कोई छोकरी पटाने के लिए झूठ बोलता है ,
मुझे तो झूठ में भी प्रतिशत नजर आता है
कोई एक या उससे जयादा तो कोई शत प्रतिशत बोलता है,
फिर भी हर कोई सबको सच बोलने की सीख देता है ,
कोई उसे समझता है ,कोई उसे हवा में उडा देता है ,

रास्ते का दीया

रास्ते का दीया मुझे दिखाई दिया , और बोला अरे मानव तुने ये क्या किया , चारो तरफ अधेरे का नजरिया , तू मेरी तरह बन पथिक को raah दिखता चल , अगर इस रोशनी से पथिक को रास्ता मिल जायेगा , तो समझ ले अ मानव तेरा जीवन सवर जायेगा